Tuesday, 23 December 2014

रसोईघर तथा वास्तु

Vastu Kolkata " Ganesh Ji "

वास्तु श्रेष्ठ  has been formed by Shri. Arun Sharma, A vastu advisor                                from Kolkata to cater to the needs of Vastu implementation in residential, commercial and industries.


Vastu Shastra is the spiritual, scientific design system from India's Vedic tradition. Vastu creates the peace and stability we need for greater success and joy in life. Vastu is
Vastu Kolkata " Vastu Purush"
Vastu Pusush
perfect for conscious lifestyles in alignment with nature. 


In the present complex scenario, we do not find time for ourselves to analyse the various reasons that lead us to failures in health, wealth or relationships.



Vastu is the form or matter, including the space that fills it. The form and the space within the form are intimately connected and affect each other. The Sanskrit expression, "Vastu reva vaastu," means that unbounded pure consciousness, the unmanifest source of manifestation, transforms into the material world.


Its importance has been explained in the Indian civilization thousand years ago. According to it before constructing our house hotel, factory, office, clinic, hospital, restaurant, inn or temple etc. We should know the five elements and do the construction accordingly so that one gets PEACE, PROSPERITY & HAPPINESS.

Subham Vastu Kolkata " Vastu Slogan"

रसोईघर तथा वास्तु  


हिन्दू धर्म में रसोईघर को अन्नपूर्णा का वास माना जाता है। इसलिए न केवल इसकी पवित्रता बल्कि घर में इसकी सही स्थिति और दिशा में होना जरुरी है। वास्तुशास्त्र... की दृष्टि से नए या पुराने घरों में रसोई घर की स्थिति ठीक न होने पर अनेक अशुभ फल देखने को मिलते हैं। जैसे धनहानि, दिवालियापन , स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं, पेट में गड़बडी, परिवार में कलह जैसे नकारात्मक प्रभाव होते हैं। 


< मकान में रसोई या किचन किस जगह और स्थिति में होना चाहिए -
< वास्तु शास्त्र की दृष्टि से मकान में रसोईघर का दक्षिण-पूर्व दिशा [आग्नेय ] में होना बहुत शुभ होता है
< किचन में सूर्य की रोशनी सबसे ज्यादा आए। इस बात का हमेशा ध्यान रखें। किचन की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि इससे सकारात्मक [पॉजिटिव एनर्जी] उर्जा आती है। 
< किचन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा प्लेटफार्म हमेशा पूर्व में होना चाहिए और ईशान कोण में सिंक व अग्नि कोण चूल्हा लगाना चाहिए।

< किचन के रंग का चयन करते समय भी विशेष ध्यान रखें। सफेद रंग लाभदायक हो जाता है 
< किचन में ग्रेनाईट का उपयोग नही करना चाहिए क्योंकि ग्रेनाईट चमकीला होने की वजह से एक प्रकार से दर्पण के समान कार्य करता है और किचन में उत्पन्न होने वाली अग्नि को रिफ्लेक्ट करता है जिसकी वजह से गृहस्वामिनी का स्वास्थ खराब रहता है 

< सिंक और चूल्हे के उपर लॉफ्ट या दुछत्ती नही होनी चाहिए 
< ओवन,मिक्सी और बिजली से चलने वाले उपकरण को किचन के दक्षिण में स्थित प्लेटफार्म में रखना चाहिए 

< किचन में हल्का सामान उत्तर और पूर्व में रखना चाहिए 
< किचन में भारी सामान दक्षिण और पश्चिम में रखना चाहिए 
< किचन में फ्रिज वायव्य या दक्षिण में रखना चाहिए 
< किचन में पूजा स्थान बनाना शुभ नहीं होता। जिस घर में किचन के अंदर ही पूजा का स्थान होता है, उसमें रहने वाले गरम दिमाग के होते हैं।

< वास्तु शास्त्र की दृष्टि से मकान में रसोईघर का दक्षिण-पूर्व दिशा [आग्नेय ] में होना बहुत शुभ होता है

< किचन में सूर्य की रोशनी सबसे ज्यादा आए। इस बात का हमेशा ध्यान रखें। किचन की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि इससे सकारात्मक [पॉजिटिव एनर्जी] उर्जा आती है। 


< किचन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा प्लेटफार्म हमेशा पूर्व में होना चाहिए और ईशान कोण में सिंक व अग्नि कोण चूल्हा लगाना चाहिए।


< किचन के रंग का चयन करते समय भी विशेष ध्यान रखें। सफेद रंग लाभदायक हो जाता है 


< किचन में ग्रेनाईट का उपयोग नही करना चाहिए क्योंकि ग्रेनाईट चमकीला होने की वजह से एक प्रकार से दर्पण के समान कार्य करता है और किचन में उत्पन्न होने वाली अग्नि को रिफ्लेक्ट करता है जिसकी वजह से गृहस्वामिनी का स्वास्थ खराब रहता है 


< सिंक और चूल्हे के उपर लॉफ्ट या दुछत्ती नही होनी चाहिए 


< ओवन,मिक्सी और बिजली से चलने वाले उपकरण को किचन के दक्षिण में स्थित प्लेटफार्म में रखना चाहिए

 
< किचन में हल्का सामान उत्तर और पूर्व में रखना चाहिए 


< किचन में भारी सामान दक्षिण और पश्चिम में रखना चाहिए 


< किचन में फ्रिज वायव्य या दक्षिण में रखना चाहिए 


< किचन में पूजा स्थान बनाना शुभ नहीं होता। जिस घर में किचन के अंदर ही पूजा का स्थान होता है, उसमें रहने वाले गरम दिमाग के होते हैं।


< अगर सिंक एवं चूल्हा पास-पास रखे हों और उन्हें अलग जगह हटाना सम्भव न हो तो मध्य में एक छोटा सा पार्टीशन करके पानी और आग को दूर दूर करना चाहिए

बताने को बातें बहुत सी है ....... 

अभी इतना ही ………  
मिलते है अगली बार एक नई बात के साथ .............  



"Money is not a big matter ...Time does matter!"  Make your Home-Business place according to VASTU and reap the harvest of this wonder science. We promise to make your dream come true. 

Consultation Description are as follows, No Visiting without Appointment   

Kolkata:

Plot Searching ( Maximum 3 Plots in 1 Visit )
House/Flat Visiting 
Commercial ( Office / Shop )  
Factory  

Out Side Kolkata 



Arun Sharma
(Vastu Consultant)

cell: 0-9830667686
            subham.vastu@myself.com

                                                            


         

Disclaimer :
 Arun Sharma hereby, excludes any warranty, express or implied about the accuracy or quality regarding any of the projected contents, calculations, suggestions, advises etc. Vastu Shastra cannot be directly linked with prosperity etc. It only suggests ways in which one can live in tune with the laws of nature, so that you can be healthy and peaceful and work efficiently. We hereby declare that no one is authorised to impart any type of schools nor collect and execute Vastu corrections on our behalf unless and untill otherwise intimated in writing.

Tuesday, 7 October 2014

ऐसे स्थान जहां मकान बनाने से होता है नुकसान



Vastu Kolkata " Ganesh Ji "

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ऐसे स्थान जहां मकान बनाने से होता है नुकसान | 

हर व्यक्ति का सपना होता है "अपना घर"। 

महंगाई के इस जमाने में एक आम आदमी को अपना घर बसाने के लिए जीवन भर की जमा पूंजी लगानी पड़ती है। 

इसलिए जरूरी है कि घर ऐसे स्थान पर हो जहां आप अपने परिवार के साथ सुकून के पल बिताएं। 

वास्तुविज्ञान में कहा गया है कि जहां दक्षिण दिशा ढाल वाली हो उस स्थान पर घर बनाने से स्त्रियों को कष्ट होता है। 

इसी तरह वास्तु में कई अन्य स्थानों का भी उल्लेख किया गया है जिसका वर्णन भविष्य पुराण में भी मिलता है। 

भविष्य पुराण के अनुसार घर ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां की भूमि की ढाल पूर्व या उत्तर की ओर हो। 

मंदिर पूजनीय और पवित्र स्थान होता है लेकिन इसके आस-पास का स्थान गृहस्थों के निवास के लिए नहीं होता है।

इसका कारण संभवतः यह हो सकता है कि मंदिर की घंटी, मंत्र और शंख की ध्वनि भक्ति की भावना को अधिक उभारता है जिससे गृहस्थी से मन उचाट हो सकता है। 

घर पर मंदिर की छाया का पड़ना उन्नति में बाधक होता है। 

जिस स्थान पर मांस-मदिरा बेचा जाता हो, जुआ खेलने वाले लोग आते हों ऐसे स्थान पर भी घर नहीं बसाना चाहिए। 

इससे घर में रहने वालों को मान-सम्मान का खतरा रहता है। 

घर में रहने वालों पर नकारात्मक सोच हावी रहता है जिससे व्यक्तित्व के विकास में बाधा आती है। 

नगर का द्वार, चौक-चौराहे, राजकर्मचारी के निवास स्थान एवं राजमार्ग के आस-पास भी घर नहीं बसाना चाहिए। 

घर बसाने के लिए उचित स्थान भविष्य पुराण कहता है कि गृहस्थों को ऐसे स्थान पर घर बसाना चाहिए जहां बुद्घिजीवी और विद्वान लोग रहते हों। 

जहां आवागमन के लिए साफ और सुव्यवस्थित रास्ते बनें हों। 

जहां घर बसाने जा रहे हों वहां के लोगों के व्यवहार के विषय में पहले जान लें। जहां के लोग व्यवहारिक हों, समय-समय पर एक दूसरे का साथ दें, वहां पर घर बसाएं।

दुष्ट विचार रखने वालों के आस-पास घर नहीं बसाना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अधिक धनवान एवं अपने से कम आय वालों के बीच बसना भी उचित नहीं होता है।

भविष्य पुराण कहता है कि पड़ोसियों के बारे में जानने के बाद ज़मीन की पूरी जानकारी कर लें कि, इस पर कोई विवाद तो नहीं है। 

पड़ोसियों को हमेशा मित्र बनाए रखने की कोशिश करें।

बताने को बातें बहुत सी है ....... 

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Wednesday, 17 September 2014

सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं दिशाएं----

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सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं दिशाएं----


आवास या कार्यालय का निर्माण करते समय दिशाओं का सदैव ध्यान रखना चाहिए। सहीं दिशाओं का निर्धारण नहीं होने के कारण हमें नकारात्मक ऊर्जा मिलती रहेगी और कोई भी काम व्यवस्थित रूप से संपन्न नहीं हो सकेगा। किसी भी का निर्माण करने से पूर्व वास्तु शास्त्र की सहायता से हम अधिक ऊर्जावान बन सकते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा कर्म के साथ ही भाग्योदय में भी सहायक होती हैं। जानें दिशाओं के विषय में कुछ तथ्य-

***** उत्तर *****


उत्तर दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्रू के साथ ही यह धन को भी प्रभावित करती हैं। इस दिशा में निर्माण में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं मसलन उत्तर दिशा में भूमि तुलनात्मक रूप से नीची होना चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी इसी दिशा में करना चाहिए। बरामदा, पोर्टिको और वाश बेसिन आदि इसी दिशा में होना चाहिए।

***** ईशान *****


उत्तर-पूर्व दिशा में देवताओं का निवास होने के कारण यह दिशा दो प्रमुख ऊजाओं का समागम हैं। उत्तर दिशा और पूर्व दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। अत इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। इसलिए इसे देवताओं का स्थान अथवा ईशान दिशा कहते हैं। इस दिशा में सबसे अधिक खुला स्थान होना चाहिए। नलकूप एवं स्वीमिंग पुल भी इसी दिशा में निर्मित कराना चाहिए। घर का मुख्य द्वार इसी दिशा में शुभकारी होता हैं।


***** पूर्व *****



 पूर्व दिशा ऐश्वर्य व ख्याति के साथ सौर ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतःभवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि नीची होना चाहिए। दरवाजे और खिडकियां भी पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त रहता हैं। पोर्टिको भी पूर्व दिया में बनाया जा सकता हैं। बरामदा, बालकनी और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए। बच्चे भी इसी दिशा में मुख करके अध्ययन करें तो अच्छे अंक अर्जित कर सकते हैं।


***** वायब्य *****


उत्तर-पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष बनाएं यह दिशा वायु का स्थान हैं। अतः भवन निर्माण में गोशाला, बेडरूम और गैरेज इसी दिशा में बनाना हितकर होता है। सेवक कक्ष भी इसी दिशा में बनाना चाहिए।

***** पस्चिम *****


पश्चिम दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अतः इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, टाइलेट आदि भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में भवन और भूमि तुलनात्मक रूप से ऊॅंची होना चाहिए।

***** नेतृीत्य *****


दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुखिया का कक्ष सबसे अच्छा वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्व दिशा के नाम से संबोधित किया गया हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में उपयुक्त होता है। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में होना चाहिए। सीढ़ियों का निर्माण भी इसी दिशा में होना चाहिएै इस दिशा में खुलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल न निर्मित करें। किसी भी प्रकार का गड्ढा, शौचालय अथवा नलकूप का इस दिशा में वास्तु के अनुसार वर्जित हैं।

***** आग्नेय *****


दक्षिण-पूर्व दिशा में किचिन, सेप्टिक टेंक बनाना उपयुक्त होता है। यह दिशा अग्नि प्रधान होती हैं अतः इस दिशा में अग्नि से संबंधित कार्य जैसे कि किचिन, ट्रांसफार्मर, जनरेटर ब्वायलर आदि इसी दिशा में होना चाहिए। सेप्टिक टेंक भी इसी दिशा में बनाना ठीक रहता हैं।

***** दक्षिण *****


दक्षिण दिन यम की दिशा है यहां धन रखना उत्तम होता हैं। यम का आशय मृत्यु से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी प्रकार के गड्ढे और शैचालय आदि किसी भी स्थिति में निर्मित करें। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। फैक्ट्री में मशीन इसी दिशा में लगाना चाहिए। ऊंचे पेड़ भी इसी दिशा में लगाने चाहिए। इस दिशा में धन रखने से असीम वृद्धि होती हैं। 


कोई भी जातक इन दिशाओं के अनुसार कार्यालय, आवास, दुकान फैक्ट्री का निर्माण कर धन-धान्य से परिपूर्ण हो सकता हैं।


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Wednesday, 6 August 2014

वास्तु और विवाह

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वास्तु और विवाह 


विवाह या शादी को जीवन का महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। सामान्यत: हर इंसान का विवाह अवश्य होता है। विवाह के बाद वर-वधु के साथ दोनों के परिवारों का जीवन बदलता है। इसी वजह से शादी किससे की जाए, इस संबंध में सावधानी अवश्य रखी जाती है। कैसी लड़की से विवाह करना चाहिए और कैसी लड़की से नहीं, इस संबंध में आचार्य चाणक्य बताया है कि : -


वरयेत् कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम्।

रूपशीलां न नीचस्य विवाह: सदृशे कुले।।


चाणक्य कहते हैं समझदार मनुष्य वही है जो विवाह के लिए नारी की बाहरी सुंदरता न देखते हुए मन की सुंदरता देखे। यदि कोई उच्च कुल की कुरूप कन्या सुंस्कारी हो तो उससे विवाह कर लेना चाहिए। जबकि कोई सुंदर कन्या यदि संस्कारी न हो, अधार्मिक हो, नीच कुल की हो, जिसका चरित्र ठीक न हो तो उससे किसी भी परिस्थिति में विवाह नहीं करना चाहिए। विवाह हमेशा समान कुल में शुभ रहता है।


चाणक्य के अनुसार समझदार और श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो उच्चकुल में जन्म लेने वाली सुसंस्कारी कुरूप कन्या से विवाह कर लेता है। विवाह के बाद कन्या के गुण ही परिवार को आगे बढ़ाते हैं। जबकि सुंदर नीच कुल में पैदा होने वाली कन्या विवाह के बाद परिवार को तोड़ देती है। ऐसे लड़कियों का स्वभाव व आचरण निम्न ही रहता है। जबकि धार्मिक और ईश्वर में आस्था रखने वाली संस्कारी कन्या के आचार-विचार भी शुद्ध होंगे जो एक श्रेष्ठ परिवार का निर्माण करने में सक्षम रहती है।

 

अब हम बात करते है, कि घर में हम ऐसा क्या करें या ऐसी क्या व्यवस्था रखें कि हमारे बच्चों चाहे वो लड़का हो या लड़की कि शादी में विलम्ब न हो। वैसे विवाह विलंब के कई कारण हो सकते हैं। वास्तु दोष भी इसका एक प्रमुख कारण हो सकता है। 

यदि आप भी अपनी संतान के विवाह विलंब से चिंतित हैं, तो यहां वास्तु संबंधी कुछ उपाय बता रहा हूँ, जिनका प्रयोग करने पर शीघ्र विवाह के योग बन सकते हैं :-


विवाह योग्य युवाओं का कमरा उत्तर दिशा या उत्तर-पूर्व दिशा या उत्तर पश्चिम दिशा में रखें।


सोते समय पैर उत्तर की ओर तथा सिर दक्षिण की ओर रखना चाहिए।


अविवाहितों के कमरे का रंग गुलाबी ( दिशा देख कर ) , पीला या सफेद होना चाहिए।


युवाओं के कमरे में एक से अधिक दरवाजे हो तो श्रेष्ठ है।


विवाह योग्य लड़के-लड़कियां अधूरे ( तीन या पांच कोने वाले ) बने कमरे में बिलकुल ना रहें।


लड़के-लड़कियों के कमरे में काले रंग की कोई वस्तु ना रखें तो अच्छा है।


कमरे में बीम दिखाई नहीं देना चाहिए।


कमरे की पूर्व-उत्तर दिशा में पानी का फव्वारा या जल से सम्बंधित कोई चित्र रखें।


कक्ष की उत्तर दिशा में क्रिस्टल बॉल, कांच की प्लेट रखें।


विवाह योग्य व्यक्ति का कमरा दक्षिण या दक्षिण पश्चिम दिशा में नहीं होना चाहिए।


कमरे में कोई भी खाली बर्तन ना रखे।


अविवाहित व्यक्ति के पलंग के नीचे कोई भी भारी वस्तु या लोहे की वस्तु कतई ना रखें। ऐसा होने से उनके विवाह योग में बाधा उत्पन्न होती है।


यदि विवाह प्रस्ताव में व्यवधान आ रहे हों तो विवाह वार्ता के लिए घर आए अतिथियों को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख घर में अंदर की ओर हो और उन्हें घर का दरवाजा  दिखाई न दे। ऐसा करने से बात पक्की होने की संभावना बढ़ जाती है।


यदि विवाह के पूर्व लड़का-लड़की घर वालों की रजामंदी से मिलना चाहें तो बैठक व्यवस्था इस प्रकार करें कि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर न हो।


यदि आप भी अपनी संतान के विवाह में हो रही देरी से परेशान हैं तो एक बार घर के वास्तु दोषों पर जरुर विचार करें।

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